Roadmap to Spoken English

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अंग्रेजी सीखने का सही तरीका या रास्ता

प्रश्नः-अंग्रेजी सीखने का सबसे अच्छा तरीका कौन सा है ?

उत्तरः- हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद ही अंग्रेजी सीखने का सबसे अच्छा तरीका या रास्ता है।

प्रश्नः- लेकिन इंग्लिश मीडियम स्कूलों मे तो हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद पढ़ाया ही नही जाता ?

उत्तरः- आप सही कह रहे हैं। यही वजह है कि कक्षा 1 से लेकर 12 वीं तक इंग्लिश मीडियम स्कूलों मे पढ़ने के बाद भी केवल एक प्रतिशत बच्चे ही केवल काम चलाऊ इंग्लिश ही बोल पाते हैं। इंग्लिश मीडियम स्कूलों की यह दुर्दशा इसीलिये हुई है क्योंकि वहां हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद नही पढ़ाया जाता है। इंग्लिश मीडियम स्कूलों का रिजल्ट तभी अच्छा माना जाना चाहिये जब 80 से 90 प्रतिशत बच्चे पूरे विश्वास के साथ अच्छी धारा प्रवाह इंग्लिश बोलें।

प्रश्नः- लेकिन इंग्लिश मीडियम स्कूलों से निकले क्षात्र उच्च तकनीकी शिक्षा प्राप्त करके बड़े बड़े पदों मे काम कर रहे हैं। उन्होंने तो हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद नहीं सीखा ?

उत्तरः-आप सही कह रहे हैं। एक लम्बे अनुभव के बाद इंग्लिश मे काम करते करते लोगों की इंग्लिश ठीक हो जाती है। या यह कहिये उनसे हिन्दी से इंग्लिश मे अनुवाद करते बनने लगता है। परन्तु इसमे गौर करने की बात यह है कि इस रास्ते से आपने इंग्लिश ठीक करने मे 15 से 20 साल लिये। जबकि यही काम आप अल्ट्रामाडर्न इंग्लिश कोचिंग मे प्रवेश लेकर नवीं और दसवीं क्लास मे ही कर सकते थे। आपको सिर्फ एक से दो साल लगते।

प्रश्नः- लेकिन सभी टीचर और इंग्लिश कोचिंग तो केवल स्पोकेन इंग्लिश ही सिखाते हैं। हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद तो कोई नही सिखाता ?

उत्तरः-यही वजह है कि ज्यादातर बच्चे इंग्लिश नही सीख पाते। केवल कुछ बच्चे कुछ वार्तालाप रट लेने मे सफल हो जाते हैं। उस रटे हुए वार्तालाप को बोलकर वे यह भ्रम पैदा करने मे सफल हो जाते हैं कि उनसे इंग्लिश बनती है। उनकी इंग्लिश को कोई टेस्ट भी नही करता है इसलिये उनके बारे मे धारणा भी यही बनी रहती है कि उनसे इंग्लिश बनती है। जबकि सच्चाई यह है कि वे उतना ही बोल सकते हैं जितना वे रटे हैं। अगर उसके अतिरिक्त उनसे कुछ पूंछा जायेगा तो वे नही बोल पायेंगे। टेस्ट लेने पर ही सच्चाई सामने आयेगी।

प्रश्नः-लेकिन इंग्लिश मीडियम स्कूलों मे भी तो केवल स्पोकेन इंग्लिश पर ही जोर देते हैं। ग्रैमर पर जोर नही देते ?

उत्तरः-इसी बुराई की वजह से इंग्लिश मीडियम स्कूलों मे बच्चों का जीवन खराब हो जाता है। ग्रैमर तो अवश्य पढ़ाई जानी चाहिये। बहुत से ऐसे केस देखने मे आ रहे हैं कि बच्चों से न तो हिन्दी ही बनती है नही इंग्लिश बनती है। ऐसे बच्चे किसी काम के नही रहते।

प्रश्नः-स्पोकेन इंग्लिश तो एक दो महीने मे ही सीखी जा सकती है तो हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद पर हम एक साल या दो साल क्यों लगायें ?

उत्तरः-स्पोकेन इंग्लिश एक दो महीने मे नही सीखी जा सकती है। स्पोकेन इंग्लिश एक दो महीने मे वही बोल सकता है जिसने पहले से अच्छी तैयारी की हो। किसी के भी पास जादू की कोई पुड़िया नही है जिसे खाते ही आप से स्पोकेन इंग्लिश बनने लगेगी। जिस तरह से आजकल स्पोकेन इंग्लिश सिखाई जा रही है उसमे आपका आप इंग्लिश सीखना इस बात पर निर्भर करता है कि आप इंग्लिश कितना तेजी से समझते हैं और वाक्यों को कितना याद रखते हैं ताकि उन्हे बाद मे जब जरूरत पड़े तब बोला जा सके। बहुत कम लोग ही ऐसा कर पाते हैं। हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद के द्वारा हर व्यक्ति इंग्लिश सीख सकता है चाहे वह कितना भी कमजोर क्यों न हो।

प्रश्नः- क्या हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद सीखना बहुत कठिन है ?

उत्तरः- नही बिल्कुल कठिन नही है। अंग्रेजी अनुवाद सीखना बहुत मजेदार होता है। केवल अभ्यास बहुत करना पड़ता है इसलिये समय लगता है।